शुक्रवार, 25 जुलाई 2008


कुछ दिन पूर्व मैने अपनी एक संस्मरण की पोस्ट डाली थी, मुंबई में भडास परिवार के मिलन से लेकर नए और अबूझ लेकिन अपने से रिश्तों की दास्ताँ थी, रुपेश भाई का प्यार तो मुनव्वर आपा का स्नेह, हरभुशनभाई का आत्मिक व्यवहार मगर सबसे जुदा हमारी मनीषा दीदी का प्रेम ऐसा की जैसे वो हमारी माँ हो या बड़ी बहन या फ़िर ऐसा रिश्ता की अधिकार के साथ हम एक दुसरे पर लाड प्यार या फ़िर गुस्सा भी कर सकें।
मेरा ये पोस्ट कहने को तो सिर्फ़ एक स्वजन मिलन कार्यक्रम जैसा था मगर सच कहें तो रिश्तों की नींव थी जो निश्चित ही बेहद मजबूती के साथ डाली गयी। मगर इस पोस्ट को डालने के बाद ही हमारी मनीषा दीदी ने एक प्यारा सा मेल मुझे कर दिया, कहने को सिर्फ़ ये का मेल है मगर मानवीय संवेदना का अथाह सागर, सच कहूं तो इसे कई बार पढ़ा और बार बार पढ़ा, अभी भी पढता हूँ और जब ये मेल आया तभी विचार की इसे भडास पर डालूँ , गुरुवार से सलाह भी लिया मगर एक छोटे भाई को भेजे इस निजी पत्र को सार्वजानिक करुँ या ना करुँ के ऊहापोह में रहा। मेल पढ़ें.......भाई,आपने जो तस्वीरें भड़ास पर डाली हैं उन्हें देख कर एक बार मैं रूपेश दादा से लिपट कर रो ली क्योंकि एक मेरा वो बायोलाजिकल परिवार था जो मुझे कब का भूल चुका है और एक आप लोग हैं जिनसे मेरा कोई रक्त संबंध न होने पर भी लगता है कि जन्म जन्म का साथ है। आज भाई के घर पर ही रुक गयी हूं।आपको बहुत सारा प्यार,अच्छे से नौकरी करो और खूब नाम कमाओ ताकि आपकी ये बहन आप सब पर गर्व कर सके।प्रेम सहितमनीषा दीदी
ये मेरी वो बहन है जो लैंगिक विकलांग है, समाज जिसे अछूत समझती है और जिम्मेदारी से भागने वाले हमारे समाज के मठाधीश का समाज के इन बच्चों के लिए कोई दायित्व नही मगर मेरे लिए ये मेरी बहन का केसा ख़त है जिसमे वर्णित संवेदना मुझे अभी के सम्पूर्ण मनुष्यों में नही नजर आती, एक छोटा सा संवाद छोटी सी मुलाक़ात मगर रिश्ते का जोड़ ऐसा की जैसे हमारी कई जन्मों की पहचान हो।
सच कहूं तो इसे सामने रखने का कार्य सिर्फ़ इसलिए की आज के समाज में सच्चे अर्थों में मेरे लिए तो मनीषा दीदी ही सबसे अपनी हैं क्यूंकि ऐसा प्रेम नि : स्वार्थ भाव मुझे नही लगता की आपको अपने घरों में भी मिलेगा।
दीदी हम आपके साथ हमेशा हैं।
आपके चरणों में इस छोटे भाई का चरणवंदन
आपका छोटा भाई
रजनीश के झा

बुधवार, 9 जुलाई 2008

सेक्स वेबसाइट का अर्धसत्य को प्रस्ताव.......



आज एक बार फिर से शिद्दत से एहसास हुआ था कि मैं बाकी सामान्य लोगों से अलग हूं क्योंकि मेरे बड़े भाई साहब डा.रूपेश श्रीवास्तव ने जिस तरह मुझे बताया कि उन्हें क्या और किससे प्रस्ताव आया... हमेशा की तरह से हम भाई-बहन मिले तो मैंने देखा कि भाई कुछ उदास से महसूस हो रहे हैं लेकिन अपनी उदासी को मुझसे छिपाने की नाकामयाब कोशिश कर रहे हैं। जब मैंने बहुत पूंछा तो उन्होंने बताया कि उन्हें किसी सेक्स वेबसाइट चलाने वाले ने फोन किया था कि क्या आप अर्धसत्य को उस वेबसाइट से जोड़ना चाहेंगे? हम लोग गे-लेस्बियन सेक्शन के साथ में एक नया सेक्शन हिजड़ों के लिये शुरू करने जा रहे हैं. हमारी व्यापारिक नीति व शर्तें ये...ये और वो ...वो हैं। यह जान कर थोड़ा सा पल भर को तो मुझे भी दुःख हुआ पर ये सोच कर कि इंटरनेट पर तो इस विषय की भरमार है तो वो बस एक व्यवसायी था जिसने हमें भी अपने जैसा समझा होगा और अपनी नीति बता दी, इस पर सहजता से उसे मना कर देना चाहिये बस लेकिन हम दोनो तो क्षुब्ध हो गये। शायद अभी हम दोनो को इन कटुताओं को झेलने के लिये और अधिक मजबूत होना पड़ेगा। हम लोगों ने इस विषय को चाय की चुस्की में ग़र्क करके जो कष्ट हुआ उसे निगल लिया और फिर चल पड़े हैं अपने रास्ते पर.......... ये सोच कर कि इस तरह के लोगों के अलावा ऐसे भी लोग तो हैं जो मुझे प्रेम करते हैं ,सम्मान देते हैं,आदर से दीदी कह कर पुकारते हैं। भाई ने खुद मुझे संबल दिया है किन्तु शायद मुझे भरमाने के लिये चिंतित दिखाते हैं खुद को कि वे भी साधारण इंसान हैं।
 

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आयुषवेद by डॉ.रूपेश श्रीवास्तव