सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

मार्कण्डेय भाई समस्याएं कुछ अलग ही हैं.....

आज मार्कण्डेय भाई का प्रोफ़ाइल देखा तो पता चला कि वे पंखों वाली भड़ास के भी सदस्य हैं तो वहां उनकी लिखी एक पोस्ट पढ़ डाली और उसका एक अंश भी भड़ासियों के लिये डाका मार लायी। भाईसाहब ने लिखा है कि सरकार पर कमेंट करना मूर्खता है तो बस इतना कहने का साहस है कि सरकार कोई एक आदमी नहीं है इसे तो हम आप जैसे लोग बाकायदा लोकतांत्रिक तरीके से वोट देकर बनाते हैं और अगर हम ही जाति-धर्म-भाषा-लिंग-क्षेत्र जैसे मुद्दों के कारण वोट देते हैं तो ये हमारे प्रतिनिधि के चयन में गलती है। यदि आप मौजूदा सरकार की बात कर रहे हैं तो बस इतना ही कहूंगी कि साठ सालों में किस पार्टी ने शासन में आकर समस्याएं सुलझाई हैं? यदि जाति-धर्म-भाषा-लिंग-क्षेत्र के बकवास मुद्दे समाप्त हो गये तो देश समेकित प्रगति करने लगेगा। सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा वह "कोडीआइड ला" के अंतर्गत कहा है लेकिन उसका पालन कौन करवाएगा यह तो साठ सालों से समस्या बनी है इसी लड़ाई को तो हमारे जस्टिस आनंद सिंह पिछले पंद्रह सालों से तकलीफ़ें उठाते हुए भी जारी रखे हैं। नागरिकता का कोई प्रमाण पत्र तो मुझ जैसे लैंगिक विकलांग(हिजड़ॊ) के पास भी नहीं है चाहे वह राशन कार्ड हो या पासपोर्ट...............................
देश की मूल समस्याएं कुछ अलग हैं जिनकी तरह कुछ कमीने किस्म के कुटिल राजनेता जनता का ध्यान ही नहीं जाने देते ताकि हम बेकार के मुद्दों में उलझे रहें
भाई मार्कण्डेय ने लिखा है......
हमारी सरकार ........ उसपर तो कमेन्ट करना मुर्खता है । जानते हुए छोटे घाव को कैसे नासूर बनाया जाता है ? यह सीखना हो तो कोई इसे सरकार से सीखे ।सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है की हरेक भारतीय के पास पहचान पत्र होना चाहिए । जिससे की उनकी नागरिकता पहचानी जा सके । सीमावर्ती इलाकों में तो इसे अनिवार्य कर देना चाहिए । कोर्ट ने सरकार से जबाब भी माँगा ......पर वह लगता है सो गई है । यह नासूर इस कंट्री को ही तबाह कर देगा जिस तरह स्पेन का नासूर नेपोलियन को और साउथ का नासूर औरंगजेब को बरबाद कर दिया । समय रहते चेत जाने में ही समझदारी है ।ऐसे लोगो को भी सबक सिखाया जाय जो बिना सोचे समझे बंगालादेशिओं को नौकर बना लेते है । कैम्पों में अबैध बंगालादेशिओं को वे समान उपलब्ध है जो यहाँ के अधिकाँश नागरिकों को भी नही है । रासन कार्ड , नौकरी , शिक्षा का अधिकार देश के नागरिकों को है न की अबैध नागरिकों को ।बन्ग्लादेशिओं को पनाह देने में पश्चिम बंगाल और असाम का बड़ा हाथ है । वह वे पहचान में ही नही आते की कौन देशी है और कौन विदेशी ...... नेता अपनी नेतागिरी से बाज नही आते । एक दिन देश की जनता उनसे सवाल जरुर करेगी । तब उन्हें बचाने के लिए कोई बंगलादेशी नही आयेगा ।

सोमवार, 16 फ़रवरी 2009

मैं कोई बड़ी हस्ती हो गयी हूं जो लोग मेरे साथ ऐसा व्यवहार करने लगे हैं?

क्या मैं कोई बड़ी हस्ती हो गयी हूं जो लोग मेरे साथ ऐसा व्यवहार करने लगे हैं? जब से मैं ब्लागिंग के द्वारा अपनी समस्याएं लिख रही हूं मेरे दिल का बोझ तो उतर रहा है ये सच है। कल जब मैं भायखला स्टेशन पर ट्रेन में मांगने के बाद घर जाने के लिये अपनी बाकी बहनो रम्भा अक्का और सोना अक्का वगैरह का इंतजार कर रही थी तो देखा कि एक कोने में खड़ी एक युवती अपनी पांच साल की बेटी के साथ सुबक-सुबक कर रो रही है और लोग उसके अगल-बगल से गुजर रहे हैं लेकिन कोई नहीं पूछता कि क्या हुआ क्यों रो रही हो....। मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने पास जाकर पूछ लिया कि बहन क्या समस्या है क्यों रो रही हो क्या मैं तुम्हारे लिये कुछ कर सकती हूं? इस पर उसने सिर उठा कर मुझे देखा तो अपलक दो मिनट तक देखती ही रह गयी फिर जोर से लिपट कर रोने लगी। दिलासा देने के बाद चुप कराने पर उसने सीधे मेरा नाम लेते हुए बात शुरू करी कि मनीषा दीदी मेरे पति ने दूसरी शादी कर ली है और मुझे घर से निकाल दिया है मेरे पास कुछ नहीं है और वो आदमी कहता है कि बिना तलाक दिये वह दूसरी या ग्यारह तक शादियां कर सकता है इस्लाम में जायज़ है, पीटता है खाना नहीं देता मैं ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं हूं दसवी पास हूं मेरा पति डाक्टर है उसका नाम अज़हर है वगैरह वगैरह............। वह लड़की बोलती जा रही थी मैं अवाक सी ये सोच रही थी कि वो मुझे कैसे जानती है? फिर उसने ही बताया कि उसने मुझे इंटरनेट पर भड़ास में देखा था और फिर तब से अर्धसत्य देख रही है और पहचानती है। वो मुझसे ऐसा व्यवहार कर रही थी जैसे कि मैं कोई बहुत बड़ी हस्ती हूं और उसकी समस्या चुटकी बजाते ही हल कर दूंगी।
तब तक मेरी बहनें आ गयी और मैं उस लड़की को बच्ची के साथ मुनव्वर आपा के घर भेज आयी हूं। आप सब बताइये कि इस विषय पर मैं क्या करूं? क्या अर्धसत्य पर उसकी कहानी लिखूं कुछ होगा? न्याय मिलेगा?ब्लाग का इस दिशा में कैसे प्रयोग कर सकती हूं?अभी वह हमारे सम्पर्क में मुनव्वर आपा के साथ ही है।

बुधवार, 4 फ़रवरी 2009

मेरी बहन की खुशी.......

अर्धसत्य परिवार के मार्गदर्शकों में से एक श्री मोहम्मद उमर रफ़ाई व मनीषा नारायण दिल खोल कर ठहाके लगाते हुए
जब हम किसी काम को "बस यूं ही" अपनी खुशी के लिये शुरू करते हैं और वह काम बढ़ते-बढ़ते एक महाअभियान का रूप धारण कर ले तब आपको उसमें होने वाली छोटी सी सफलता भी उसी अनुपात में विशालता लिये हुए लगती है। कुछ समय पहले तक शायद मेरी बहन मनीषा नारायण की मुस्कराहट मुझे इतना आह्लादित न करती रही हो लेकिन आज अब मैं इस बात को देख रहा हूं कि मुझे उनकी हर मुस्कान, हर हंसी बहुत बड़ा सुख दे जाती है; ठीक ऐसा ही होता है जब भूमिका या दिव्या जैसे मेरे प्यारे बच्चे किसी बात पर मुझसे चुटकी लेकर बात करते हैं। आदरणीय बाबू जी शास्त्री श्री जे.सी.फिलिप ने जो पुस्तकें भेजी हैं वह एक नया उत्साह लेकर आयी हैं विशेष तौर पर मेरे लिये। अब मैं दीदी को दिल खोल कर हंसते देखता हूं तो लगता है कि जीवन सफ़ल सा होता प्रतीत हो रहा है।
 

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आयुषवेद by डॉ.रूपेश श्रीवास्तव