मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

किन्नर,किन्नर,किन्नर....अरे हम किन्नर नहीं लैंगिक विकलाँग हैं जिन्हें तुम हिजड़ा कहते हो

प्रेम, आदर, सहानुभूति जैसे भावों के चलते ही सही पर हमें किन्नर कह कर संबोधित करा जाता है जो कि किसी भी तरह से हमारी स्थिति की व्याख्या नहीं करता। न ही यह शब्द हमें न्याय दिला पाता है कि हम समाज में बराबरी का दर्जा पा सकें। मुझे प्रेम करने वाली मेरी बहन डॉ.दिव्या श्रीवास्तव ने भी जो अपने ब्लॉग ZEAL पर हालिया पोस्ट लिखी है उसमें हमें किन्नर ही लिखा है।
किन्नर शब्द और लोगों के बारे में विस्तार से जानने के लिये इस लिंक पर पधारें
किन्नर नहीं हैं हमलोग
 

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आयुषवेद by डॉ.रूपेश श्रीवास्तव